Saturday, September 25, 2010

Yeh Mera Mann

ना  जाने  क्या  सोचता  है ,
और  ना  जाने  क्यूँ  सोचता  है ,

कहता  है
रास्ते  तो  तू  ढूंढ  ही  लेगा ,
मैंने  कहा
अब  तो  मंजिल  क्या  है ,
यह  भी  नहीं  मालूम .
रास्ते  कहाँ  से  लाऊं ?

फिर  कहता  है
तोड़  दो  उन्  दीवारों  को
आजादी  तो  बस  तुम्हारी  ही  है .
तो  मैंने  पूछा ,
जो  दीवारें  तुमने  बना  रखी  हैं
उनका  क्या  करूँ  ?

ना  जाने  यह  क्या  चाहता  है
और  ना  जाने  क्यूँ  चाहता  है ,

देखता  है  खुशियों  को
पर  खुद  खुश  नहीं  रहता ,
चाहता  है  आसमान  को छूना
लेकिन  ऊँचाइयों  से  डरता  है ,

डूबा  रहता  है  ख्यालों  में
किन्तु  जीना  चाहता  है  यथार्थ  में ,

और  यूँ  तो  यह  मेरा  ही  है
पर  मेरी  सुनता  कब  है  ?

यह  मेरा  मन
ना  जाने  क्या - क्या  सोचता  है .


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