Friday, September 24, 2010

The First Poem

सोचकर  निकले  थे,
दुनिया  बदल  देंगें.
लहरें  आएँगी  तो  क्या,
हम  समंदर  में  नहाना  छोड़  देंगें.

लेकिन
यह  दुनिया , आज  भी  वही  है .
बदल  दिया  है  उसने ,  मुझे

वो  थी  एक  मुस्कान ,
पर  अब  याद  नहीं .
अब  तो  एक  से  लगते  हैं
सभी  चेहरे ,
मिटटी  के  पुतले  से .

पर  धीरे - धीरे ,
जैसे  - तैसे
सीख  लिया  है  मैंने  भी .
वो  नकली  चेहरे
वोह  चौड़ी - सी  मुस्कान

और  फिर
तुमने  भी  तो  साथ  छोड़ा  ना ,
तुम  अगर  गए  न  होते
तो  शायद ,
हम  बदले न  होते .

हाँ  इतना  जरूर  मालूम  है
निकला  तो  मैं  ही  था ,
मगर  इस  बात  से  अनजान
कि  जिसे  मैं  बदलने  चला  था ,
वो  तो  वहीँ ,
पीछे छुट  रहा  था .


1 comment:

  1. Jiyo beta tum to pura chamka diye....... Subodh rocked... :) :P

    ReplyDelete