Saturday, September 25, 2010

Main Chahta Hoon

उन्  तितलियों  की भांति ,
कभी  पत्तों  की सीढियां ,
तो  कभी  फूलों  पर
उछलना  मचलना
मैं  चाहता  हूँ .

वो  तारों  की  बातें
वो  गुड़ियों  का  खेल
और  उस  पतंग  के  साथ ,
आसमान  को  छूने  की  तमन्ना
अपने  बचपन  को  फिर  जीना 
मैं  चाहता  हूँ.

उस  पहाड़  के  ऊपर
हाँ  उस  सबसे  ऊँची  चोटी  पर
अपनी  बाहें  फैलाये
कुछ  जोर - जोर  से  चिल्लाना 
मैं  चाहता  हूँ.

तुम्हारा  विश्वास 
जो  तुम्हें  मुझमें  है  माँ ,
आशाएं  करती  हो  जो  मुझसे ,
उन्  विश्वासों  की  कल्पनाओं
को  हकीकत  में  उतरना
मैं  चाहता  हूँ .

जो  हैं  हमसे  कुछ  अलग
थोड़े  लाचार ,
थोड़े  से  ना - खुशकिस्मत
पर  ख्वाबों  से  लबालब
उनके  सपनो  को  पूरा  कर  जाना
मैं  चाहता  हूँ .

थाम  हाथ  लहरें  कहा  ले  चलेंगी
खड़ा  किनारे  सोच  रहा  हूँ
डरता  हूँ ,
पर  कूदने  की  जिद्द  भी  है .
उस  गहराई  में  समा  कर ,
एक  दिन  मोतियाँ  चुरा  लाना
मैं  चाहता  हूँ .




No comments:

Post a Comment